शहीद ऊधम सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे ज्वाला स्वरूप सेनानी थे, जिनका नाम सुनते ही देशभक्ति और बलिदान की भावना जाग उठती है। वे न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य को सीधे ललकारने वाले उन चुनिंदा वीरों में शामिल थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने का साहस किया।
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर जनरल डायर द्वारा की गई गोलीबारी में हजारों लोग शहीद हुए थे। ऊधम सिंह भी उस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। तभी उन्होंने तय कर लिया था कि इस नरसंहार का जवाब दिया जाएगा—और उन्होंने अपना जीवन इसी लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया।
13 मार्च 1940: न्याय का दिन
21 वर्षों तक भीतर पल रही आग उस दिन भड़क उठी जब ऊधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में भाषण दे रहे पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर को गोली मार दी। ओ’ड्वायर वही व्यक्ति था, जिसने जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीछे की साजिश रची थी।
न्यायालय में सिंह की निर्भीक स्वीकारोक्ति
1 अप्रैल 1940 को उन पर हत्या का औपचारिक आरोप लगाया गया। ब्रिक्सटन जेल में बंद रहते हुए जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने यह हत्या क्यों की, तो उन्होंने निर्भीकता से जवाब दिया:
“मैंने ऐसा किया क्योंकि मुझे उससे रंजिश थी। वह इसके लायक था। मैं समाज या किसी और चीज़ से जुड़ा नहीं हूँ। मुझे मरने से कोई ऐतराज़ नहीं। बूढ़े होने तक इंतज़ार करने का क्या फ़ायदा?”
हिरासत में रहते हुए उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद बताया—यह नाम हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों की एकता और उनकी ‘आज़ादी’ की भावना का प्रतीक बना।
मुकदमे में दिए ऐतिहासिक बयान
जब न्यायालय में उनसे उनकी प्रेरणा पूछी गई, तो उनका जवाब भारत के हर स्वतंत्रता सेनानी की आवाज़ बन गया:
“मैंने उसे इसलिए मारा क्योंकि वह मेरे लोगों की आत्मा को कुचलना चाहता था। मैंने पूरे 21 साल इस बदले के लिए जिया। मुझे कोई डर नहीं, क्योंकि मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ।”
बलिदान का दिन: 31 जुलाई
42 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उन्हें जबरन भोजन कराया गया और अंततः 31 जुलाई 1940 को उन्हें फाँसी दे दी गई। आज भी यह दिन “शहीद ऊधम सिंह बलिदान दिवस” के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। पंजाब सरकार ने इस वर्ष उनके सम्मान में एक दिन का अवकाश भी घोषित किया है।
नमन है ऐसे अमर शहीद को
ऊधम सिंह की शहादत सिर्फ एक बदले की कहानी नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता, न्याय और स्वाभिमान की अमिट मिसाल है। उनका जीवन हर भारतीय को यह सिखाता है कि अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होना ही सच्चा देशप्रेम है।
– संजीव मेहरोत्रा
महामंत्री, बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन
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