बरेली। ढाई अक्षर का शब्द प्यार भले छोटा है अगर इसका सही इस्तेमाल हो जाये तो आदमी क्या खतरनाक से खतरनाक जानवर भी सुधर जाए या फिर उसके स्वभाव में परिवर्तन आ जाये। कुछ इसी तरह का एक मामला कर्मचारी नगर में है। दरसल यहां करीब एक साल पहले नंदी (बिजार , सांड ) एक साल पहले बीमारी की हालत में कर्मचारी नगर की कॉलोनी विस्तार में आ गया था । उस समय यह चल तो रहा था लेकिन उतना एक्टिव नहीं था जितना आमतौर पर होते है। आसपास के लोगों ने देखा तो किसी की हिम्मत नहीं हुई कि नन्दी को पास जाकर कोई खाना दिया जाए या फिर उसे दवाई दी जाए।
नंदी के बारे में विस्तार में रहने वाले दवा व्यापारी हितेंद्र सिंह चौधरी को पता चली , वह नंदी को देखने उस जगह पहुंच गए। जब उन्होंने देखा कि नन्दी ठीक से खा नहीं रहा है चलने भी दिक्कत है। पास पर जाने पर सिर हिलाकर मारने की कोशिश भी कर रहा है। एक दो दिन हितेंद्र ने दूर से नंदी को ब्रेड खाने को दिया , ब्रेड खिलाने का सिलसिला ऐसे ही कुछ दिन चला । हिम्मत करके हितेंद्र उसके पास गए और अपना हाथ उसकी पीठ पर हाथ रखा इस दौरान नंदी शांत और अपनी आंखों से हितेंद्र को लगातार देखता रह। इसके बाद हितेंद्र को भी विश्वास हो गया कि नंदी उसे मारेगा नहीं । उसके बाद हितेंद्र ने नंदी की बीमारी को जानने की कोशिश की तो पता चला कि उसके अंदर म कैल्शियम की दिक्कत के साथ पैर में उसके खुर नहीं है जिसके कारण वह चल नहीं पा रहा है।

हितेंद्र ने नंदी की बीमारी सही करने के लिए उसकी खुराक बढ़ाई । वह पिछले एक साल से नंदी को 2 से 5 किलो गाजर प्रतिदिन , मटर , पालक के साथ लगातार 2 से 3 ब्रेड देने का काम कर रहे है। यही कारण है उग्र स्वभाव का यह जानवर उनका दोस्त बन गया है । वह हर रोज उनके आने का इंतजार करता है।

वह हर दिन नन्दी को दुलार करने के साथ उसे दबा भी खिलाते है। आज इस नंदी का ऐसा स्वभाव हो गया है कि कॉलोनी के बच्चे आवाज देकर नन्दी को खाना खिलाने के लिये रोक लेते है । वही कॉलोनीवासी भी इस बात पर यकीन करने लगे है कि यह जानवर भी प्यार की भाषा समझता है इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा।