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अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सोशल मीडिया का दुरुपयोग समाज लिए हानिकारक : मुफ्ती मोहम्मद सलीम  बरेलवी

 

बरेली।  सोशल मीडिया का बढता इस्तेमाल और हमारी जिम्मेदारियां” के टॉपिक पर “अंजुमन फलाहे मुस्लिमीन” सरलाही नेपाल के अध्यक्ष व दरगाह प्रमुख हजरत सुब्हानी मियां के खलीफा मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रजवी ने एक गोष्ठी का आयोजन किया। जिस में आला हज़रत के स्थापित कर्दा मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम  बरेली से मुफ्ती मोहम्मद सलीम  बरेलवी ने ऑनलाइन खिताब किया। दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि आज की जरूरत को देखते हुए सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल और बढते साइबर क्राइम को नजर में रखते हुए इस तरह के आयोजन कर छात्रो और नौजवानों को सावधान करना बेहद जरुरी है। इस लिए दरगाह के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम साहब बरेलवी ने  ऑनलाइन खिताब में विस्तार से इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह सही है कि किसी भी लोकतांत्रिक मुल्क और देश के लिए अभिव्यक्ति  की स्वतन्त्रता (इज़हारे ख़याल) उस के बुनियाद ढांचे का एक अहम हिस्सा और उसके मूल सिद्धांतों में से है। मगर इस का मतलब यह कदापि नही कि इस इजहारे ख्याल की आजादी के नाम पर हम किसी को अपमानित करें, किसी देशवासी की धार्मिक भावनाओ को आहत करें ,किसी के रंग,नस्ल,धर्म,जाति,संस्कृति और रस्मो रिवाज पर छींटाकशी करें।

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सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा का प्रचलन बढ़ा 
सोशल मीडिया आज हमारी जिन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन गया है,परन्तु हमारे नौजवान सावधानी से इस प्रकार इस्तेमाल करें जिससे किसी का अपमान न हो और न ही किसी के धर्म की धार्मिक भावना आहत हो। इधर कुछ वर्षों से हमारे देशों (भारत व नेपाल) मे मीडिया या सोशल मीडिया तथा दूसरे पब्लिक प्लेटफार्म का इजहारे ख्याल,इजहारे राय  (अभिव्यक्ति की आजादी व स्वतन्त्रता) के नाम पर दुरुपयोग करके किसी का अपमान करने,किसी समुदाय की धार्मिक व सांस्कृतिक भावनाओं को आहत करने,किसी धर्म के महापुरुषों की आलोचना करने का चलन अपनी चर्म सीमा पार करता जा रहा है।सोशल मीडिया जैसे आजाद और साझा मंच के इन प्लेटफार्मों में अपमानजनक भाषा,अपमानजनक सामग्री और अभद्र भाषा के उपयोग के उदाहरण बहुत आम होते जा रहे हैं। इन उन्मादी चलन पर प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत बहुत दिनों से महसूस की जा रही थी। हमारे देश भारत ने तो  सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिए आईटी अधिनियम 2021 की स्थापना कर ली है परन्तु इस तरह की चीजो को रोकने के लिए मात्र एक्ट व कानून ही काफी नही होता,इसके लिए हम सब को यह प्रयास करने होगे कि हमारे छात्र, नौजवान और बच्चे सोशल मीडिया के मंच से अभद्र भाषा का उपयोग और प्रसार ना करें।

कानून के दायरे में विचार साझा करे 
ऐसी सामग्री को अपलोड या साझा ना करें जो अश्लील,यौन रूप से स्पष्ट,घृणा को प्रज्वलित करती है,हिंसा को भड़काती है,भ्रामक जानकारी देती है या किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन करती है आदि। हम अपने बच्चो और छात्रो को कड़ाई से रोके कि वह सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से कोई गैर शरअई और गैर कानूनी तथा  उकसाने और भड़काने वाली पोस्ट और सामग्री प्रसारित ना करें कि जिस से आपसी सौहार्द को भी नुकसान पहुंचे और साइबर क्राइम के तहत उन पर मुकदमा भी हो जाए।मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रजवी ने कहा किआजकल यह देखा गया है कि जब भी कोई सांप्रदायिक मुद्दा सामने आता है तो लोग विभिन्न धार्मिक नेताओं या व्यक्तियों के सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ बयानों को सोशल मीडिया पर साझा करने लगते हैं जब कि सांप्रदायिक रूप से उत्तेजक सामग्री को साझा करने से विभिन्न समुदायों के खिलाफ सांप्रदायिक घृणा को और बढ़ावा मिलता है।

 

सोशल मीडिया आपसी सौहार्द को खत्म करने का हथियार नहीं बन जाए :

डाक्टर मोबीन नूरी ने कहा कि समाचारपत्र और समाचार चैनल भी पूरी तरह स्वतन्त्र नही हैं कि कुछ भी प्रसारित करें परंतु फिर भी इनके हवाले से कोई विवादास्पद बयान व सामग्री केवल कुछ समय ही दिखाई जाती है अथवा यह विवादास्पद सामग्री एक या दो बार दिखाई जाती है, लेकिन जब इसी सामग्री को सोशल मीडिया पर साझा किया जाता है, तो इसका प्रसार कई गुना हो जाता है और समाचार चैनलों पर मामला शांत होने के बाद भी यह फैलता रहता है। इसके अलावा इस सामग्री को किसी भी समय देखा जा सकता है और यह विवाद लम्बे समय के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बना रहता है।

 

 

इस तरह की सांप्रदायिक रूप से उत्तेजक सामग्री का उपयोग भविष्य में समय समय पर भी किया जाता रहता है। इसलिए राजनीतिक या धार्मिक मुद्दों पर आंतरिक मतभेदों के होते हुए  भी हर देश के हर  नागरिक का यह दायित्व है कि वह अपने देशवासियों के हितों की रक्षा करने आपसी सौहार्द को बढावा देने,नफरतों को खत्म करने समाज से हिंसात्मक सोच को पराजित करने के लिए सब इक एक साथ खड़े हों,नफरतो को खत्म करें। आज सोशल मीडिया आपसी सौहार्द को खत्म करने और नफ़रत फैलाने का सब से तेज और कारगर माध्यम बन चुका है तो इस की रोक थाम के लिए और इसके सावधानी से इस्तेमाल करने और कराने के प्रयास करे। अपने नौजवानों को सख्ती से इस के गलत इस्तेमाल से रोकें। क्योंकि इस का गलत इस्तेमाल देश और समाज के लिए तो हानिकारक है ही खुद इन नौ जवानो के लिए भी नुकसानदायक है। कायम होने वाले मुकदमों की संख्या प्रत्येक दिन बढ़ती जा रही है। इन मुकदमों पर होने वाले खर्चे की वजह से खुद हमें और हमारे देश को आर्थिक नुकसान झेलना पड रहा है।

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