77 साल बाद भी अधूरी सुबह — वाल्मीकि समाज की दर्दनाक हकीकत

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नोट ।। यह लेखक के अपने विचार

लेखक: विकास बाबू एडवोकेट, प्रदेश महासचिव, भीम आर्मी उत्तर प्रदेश

देश ने 15 अगस्त 1947 को गुलामी की जंजीरें तोड़ दीं, लेकिन वाल्मीकि समाज के लिए आज़ादी अब भी अधूरी है। सम्मान, अवसर और बराबरी के सपनों की सुबह अभी दूर है।

इतिहास से वर्तमान तक — बेड़ियों का सिलसिला

वर्ण व्यवस्था और ब्रिटिश राज ने वाल्मीकि समाज को सफाई कार्य तक सीमित कर दिया। 1871 का क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट उन्हें जन्म से अपराधी और अछूत मानता था। आज़ादी के बाद भी यह कलंक मिटा नहीं।

ठेका प्रणाली ने छीना सम्मान

1970-80 के दशक में सरकारी सफाई नौकरी स्थिरता और सम्मान का प्रतीक थी। लेकिन 1990 के बाद ठेका व्यवस्था ने इन्हें असुरक्षा और शोषण में धकेल दिया।
राजस्थान की पुष्पा देवी को स्थायी नौकरी के बजाय मात्र ₹5,000 में ‘प्रॉक्सी’ काम करना पड़ रहा है—जबकि पहले ₹20,000 वेतन, मेडिकल और पेंशन जैसी सुविधाएं मिलती थीं।

जोधपुर में ज़्यादातर ठेका सफाई कर्मचारी वाल्मीकि हैं, जबकि स्थायी पद अक्सर अन्य जातियों के पास हैं।

सरकारी आंकड़े बनाम सच्चाई

  • NAMASTE योजना में 54,574 सफाई कर्मियों की पहचान—67% अनुसूचित जाति से।
  • 732 में से 766 जिले ‘manual-scavenging-free’ घोषित—ज्यादातर कागज़ों पर।
  • 2022-23 में सीवर सफाई के दौरान 150 मौतें—90% मामलों में सुरक्षा उपकरण नहीं दिए गए।

महाराष्ट्र में 8,000 से ज़्यादा लोग अब भी मैनुअल स्कैवेंजिंग कर रहे हैं, 18 मौतों के बावजूद सरकार इसे पेशे से जोड़कर बताती रही।

जिंदगी से मौत तक — दर्द की कहानियां

  • सोनू, दिल्ली: बिना सुरक्षा सीवर साफ करते जहरीली गैस से मौत। परिवार को सिर्फ ₹2 लाख मुआवज़ा—भाई को भी उसी काम में लगना पड़ा।
  • बीकानेर, राजस्थान: तीन सफाई कर्मियों की मौत के बाद FIR दर्ज होने में 35 घंटे—हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब माँगा।

क्या यही आज़ादी है?

नौकरियां ठेके पर, भेदभाव कायम, सुरक्षा उपकरण नदारद—अगर यही हाल रहा, तो अगली पीढ़ी भी मजबूरी में सफाई कार्य करने को मजबूर होगी।

समाधान की दिशा

  • शिक्षा और छात्रवृत्ति: हर जिले में छात्रावास, कोचिंग व छात्रवृत्ति योजना।
  • नशामुक्ति और जागरूकता: मोहल्लों में स्वास्थ्य व सामाजिक जागरूकता अभियान।
  • पूर्ण मेकेनाइजेशन: NAMASTE व स्वच्छ भारत में तकनीकी व वित्तीय सहयोग की गारंटी।
  • जिलास्तरीय निगरानी: सुरक्षा, स्वास्थ्य और मुआवज़े में पारदर्शिता।
  • सामाजिक सम्मान: मीडिया, स्कूल व पंचायत स्तर पर सफाई कर्मियों को सम्मान।

असली आज़ादी तभी होगी जब सफाई का काम ‘मजबूरी’ नहीं, ‘चुनाव’ बन जाए—और हर वाल्मीकि बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और नेता बने।

 

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Author: newsvoxindia

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