निर्भय सक्सेना , वरिष्ठ पत्रकार
बरेली। श्री रानी महालक्ष्मी बाई रामलीला समिति की रामलीला में 14 वे दिन विभीषण शरणागति, विभीषण का जलाभिषेक, अंगद रावण संवाद एवं लक्ष्मण शक्ति की लीला का मंचन किया गया। श्री रानी महालक्ष्मी बाई रामलीला समिति चौधरी मोहल्ला बरेली के तत्वाधान में 456 वीं रामलीला में आज के मंचन में जब रावण को ज्ञात हुआ कि राम अपनी वानरों की सेना सहित समुद्र के पार आ चुके हैं। तो उसने अपनी राज्यसभा बुलाई उसमें कुछ विचार विमर्श किया गया।
रावण के छोटे भाई विभीषण ने रावण को परामर्श दिया कि वह कोई साधारण मनुष्य नहीं है बल्कि वे स्वयं नारायण का अवतार हैं। उनका एक साधारण सा प्रतिनिधि जो वानर के रूप में आया था उसने ही आपकी सारी लंका को जलाकर राख कर दिया था। हम लोग उसका कुछ भी ना कर सके। मैं आपको परामर्श देता हूं कि सीता जी को राम को वापस कर उनसे क्षमा याचना कर लीजिए इसी से आपका तथा आपकी प्रजा का कल्याण होगा ।
वह आपको क्षमा कर देंगे । रावण को अपने अनुज विभीषण की यह बात अच्छी ना लगी उसने क्रोधित होकर विभीषण को लात मार कर लंका से बाहर कर दिया। विभीषण सभा से अपमानित होकर भगवान श्री राम की शरण में चला गया। भगवान श्री राम ने विभीषण को लंकेश कहकर उनके कुशल पूछते हुए उनका जलाभिषेक किया तथा लंका का राज देने का वचन भी दिया। उसके बाद भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण सहित समुद्र से रास्ता मांगने की प्रार्थना करने लगे । 3 दिन तक प्रार्थना करने के पश्चात भी जब समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो श्री रामचंद्र जी उस पर क्रोधित हुए तभी समुद्र उनके सामने हाथ जोड़कर क्षमा याचना करने लगे।
उन्होंने श्री राम जी से कहा कि आपकी दल में नल और नील नाम के दो वानर हैं जो जिस पत्थर को भी पानी में छोड़ेंगे वह पत्थर आपके प्रताप से पानी में तैरने लगेगा । श्री राम ने समुद्र की बात को मानते हुए ऐसा ही किया जिससे समुद्र में पुल बन गया। युद्ध प्रारंभ करने से पूर्व श्री राम जय एक बार रावण के पास अंगद के द्वारा शांति प्रस्ताव भेजा । अंगद रावण के दरबार में पहुंचे और रावण को समझाने लगे कि आप माता सीता को राम के पास वापस कर दें और उनसे क्षमा मांग ले। वह आपको क्षमा कर देंगे। इससे आपका और आपकी प्रजा भाभी कल्याण होगा ।
रावण अंगद के प्रस्ताव से क्रोधित होकर उसने अपनी राक्षसी की सेवा से कहा कि इसको उठाकर लंका के बाहर फेंक दो। अंगद ने रावण से कहा मुझे फेंकना तो दूर आपका कोई भी सैनिक यदि मेरा पैर तिल भर भी हिला देगा तो मैं आपको वचन देता हूं कि मैं भगवान श्री राम के साथ हार स्वीकार करके वापस चले जाऊंगा। तभी रावण सैनिकों को आज्ञा दी कि उसका पैर उठाकर फेंक दो। रावण का एक-एक सैनिक अंगद के पास आया और पूरी ताकत से पैर उठाने का प्रयास किया परंतु किसी भी सैनिक द्वारा पैर उठाना तो अलग की बात वह अंगद के पैर को हिला तक ना सके। तब रावण अपने सिंहासन से स्वयं उठा और अंगद के पैर की तरह बड़ा तभी अंगद ने अपना पैर पीछे हटाते हुए रावण से कहा मेरे चरणों की तरफ मत आओ।
आप श्री राम के चरणों को पकड़ कर उनसे क्षमा मांगो । इसी में आपका कल्याण है। राम के संधि प्रस्ताव को ठुकराने के पश्चात युद्ध प्रारंभ हुआ । एक दिन रावण का पुत्र मेघनाथ युद्ध के मैदान में आया और उसने लक्ष्मण से भीषण युद्ध किया उसने शक्ति का प्रयोग करते हुए लक्ष्मण को शक्ति मारी। शक्ति लगते ही लक्ष्मण मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़े जिससे राम दल में सन्नाटा छा गया और लोग शोक मगन हो गए। विभीषण ने राम को बताया कि लंका में सुखेन वैद्य है यदि वह यहां आ जाए तो भैया लक्ष्मण का उपचार कर सकते हैं । यह सुनकर हनुमान जी पवन वेग से लंका पहुंचे और वहां सुखेन वैद्य को ले आए । सुखेन वैद्य ने लक्ष्मण को देखकर कहां की यदि सूर्योदय से पूर्व हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी आ जाए तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं।
इतना सुनते ही हनुमान जी पवन बैग से उड़ते हुए हिमालय पर्वत पहुंचे। बूटी की पहचान उन्हें नहीं थी इसलिए वह पूरा पर्वत ही लेकर आ गए। सुखन वैद्य ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार किया। जिससे उनकी मूर्छा समाप्त हो गई और वह उठकर खड़े हो गए । खुशी का वातावरण छा गया और श्री राम की जय जयकार होने लगी। उसके पश्चात युद्ध भूमि में रावण का छोटा भाई कुंभकरण आया जो लक्ष्मण के द्वारा मारा गया। रामलीला में पंडित राम गोपाल मिश्रा, शिवरीनारायण दीक्षित, हरिश्चंद्र शुक्ला घनश्याम मिश्रा अभिषेक मिश्रा,श्रेयांश बाजपेई, यश चौधरी, बृजेश प्रताप सिंह उपस्थित रहे।