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दो साल बाद मोहर्रम पर नगर में निकाले गए तजिए – फातिहा ख्वानी कराकर इमाम हुसैन को किया गया याद

बहेड़ी। मोहर्रम के मौके पर करीब दो साल बाद नगर में ताजिए निकाले गए। इस दौरान ताजियेदार या हुसैन या हुसैन के नारे लगाते हुए चल रहे थे। मोहर्रम के मौके पर लोगों ने अपने-अपने घरो में फातिहा ख्वानी कराकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। अकीदतमंदो ने मोहर्रम की 9 और 10 तारीख के रोज़े रखे और इस दौरान जगह-जगह सबील भी लगाई गईं।
मोहर्रम इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना होता है। मोहर्रम के मौके पर हर साल नगर के नैनीताल रोड पर नगर के ताजियों सहित आसपास के गांवों के ताजिए आकर घूमते हैं। कोविड-19 के चलते पिछले दो साल से मोहर्रम पर ताजिए नही निकाले गए थे। इस बार मोहर्रम पर ताज़िए निकले तो ताजियों को देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। लोगों ने रोज़े रख और फातिहा ख्वानी कराकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैहवसल्लम का फरमान है कि जिसने मोहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा उसके दो साल के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं और मोहर्रम के एक रोजे का सवाब 30 रोजों के बराबर मिलता है।
एक हदीस के मुताबिक अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया कि रमजान के अलावा सबसे बेहतर रोजे वह हैं जो मोहर्रम के महीने में रखे जाते हैं। सन् 680 में इसी माह में इराक के कर्बला एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैह वसल्लम के नाती तथा इब्र ज्याद के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हजरत इमाम हुसैन की हुई थी लेकिन जाहिरी तौर पर इब्र ज्याद के कमांडर शिम्र ने हज़रत हुसैन रजी0 और उनके सभी 72 साथियों को शहीद कर दिया था। इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए लोगों ने घरों पर फातिहा ख्वानी कराई और जगह जगह सबील लगाकर पानी और शर्बत बांटा गया।

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