बहेड़ी। मोहर्रम के मौके पर लोगों ने अपने-अपने घरों में फातिहा ख्वानी कराकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। अकीदतमंदों ने मोहर्रम की 9 और 10 तारीख के रोज़े रखे और इस दौरान जगह-जगह सबील भी लगाई गईं। प्रशासन और पुलिस ने पीएसी के साथ नगर में घूमकर इमामबाड़ों को चेक किया।
बता दें कि मोहर्रम इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना होता है। मोहर्रम के मौके पर हर साल नगर के नैनीताल रोड पर नगर के ताजियों सहित आसपास के गांवों के ताजिए आकर घूमते हैं। मोहर्रम के मौके पर लोगों ने 9 और 10 तारीख के रोज़े रखे और फातिहा ख्वानी कराकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैहवसल्लम का फरमान है कि जिसने मोहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा उसके दो साल के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं और मोहर्रम के एक रोजे का शवाब 30 रोजों के बराबर मिलता है।
एक हदीस के मुताबिक अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया कि रमजान के अलावा सबसे बेहतर रोजे वह हैं जो मोहर्रम के महीने में रखे जाते हैं। सन् 680 में इसी माह में इराक के कर्बला के मैदान में एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मोहम्मद सललल्लाहो अलैह वसल्लम के नवासे तथा इब्र ज्याद के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हजरत इमाम हुसैन की हुई थी लेकिन जाहिरी तौर पर इब्र ज्याद के कमांडर शिम्र ने हज़रत हुसैन रजी0 और उनके सभी 72 साथियों को शहीद कर दिया नगर में पुलिस घूमकर पैदल मार्च किया और इमामबाड़ों पर जाकर इमामबाड़े बंद रखने की हिदायत दी। इस दौरान इमामबाड़ों पर पुलिस और पीएसी वल तैनात रहा।