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इस्लाम धर्म ने  शरई दायरे में रह कर मुस्लिम महिलाओं  को कार्य करने की आजादी :  मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी  

 

बरेली |  जयपुर राजस्थान की “अंजुमन फलाहे ख्वातीने इस्लाम” की ओर से शीर्षक “मजहबे इस्लाम व मुस्लिम समाज के उत्थान में मुस्लिम महिलाओ की भूमिका” पर मुस्लिम नौजवानों,स्कूल,कॉलेज व विश्वविद्यालयों और मदरसा छात्रो का ज्ञान बढ़ाने लिए एक विशेष कार्यक्रम हुआ जिसमें मरकजे अहल-ए-सुन्नत मंजर-ए-इस्लाम से वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी ने भी ऑनलाइन तकरीर की। इस कार्यक्रम में देश के कई मुस्लिम स्कॉलर्स ने भाग्य लिया। बडी संख्या मे छात्रो ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि मुफ्ती सलीम बरेलवी ने ऑनलाइन व्याख्यान में  कहा कि आम तौर पर मुस्लिम महिलाओं के संबंध में यह दुष्प्रचार किया जाता है कि इस्लाम धर्म ने मुस्लिम महिलाओं को केवल घरेलू काम काज की अनुमति दी है जो सिरे से गलत है। इस्लाम धर्म की सबसे पहली और सब से ज्यादा महत्वपूर्ण और इज्जतदार खातुन जो सारे मुस्लिम समुदाय की मां और पैगम्बरे इस्लाम की पत्नी है। वह मक्का शरीफ की सबसे बडी और कामयाब कारोबारी महिला थीं।इसी तरह उस जमाने की सहाबिया महिलाओं ने शरअई दायरे में रहकर अपनी दस्तकारी,हुनर मंदी,शैक्षिक  योग्यता,कारोबारी योग्यता से मुस्लिम समाज के शैक्षिक,समाजिक,धार्मिक,आर्थिक,व्यापारिक,सांस्कृतिक पिछड़ेपन को दूर करने में अपना अनूठा योगदान दिया है। इस समय समाज के अन्दर जो बिगाड़ उत्पन्न हो रहा है और इंटलनेट की गलत सामग्री की वजह से हमारे नौजवान खराब हो रहे हैं इसकी रोकथाम मे मुस्लिम महिलाऐं घर के अंदर रह कर भी अहम भूमिका निभा सकती है। मुस्लिम महिलाओ का दायित्व है कि अपने बच्चो की अच्छी परवरिश करे। उन्हें नबियों,पैगम्बरों पीर-वलियों के सच्चे किस्से सुनाकर उन्हें मानवता की सेवा करने और नफ़रत व हिंसात्मक कार्यो से बचने पर प्रेरित करें।

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मुस्लिम स्कॉलर डाक्टर कौसर खान रजवी ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं परिवार की मूर्त और अमूर्त जरूरतों को पूरा करने में प्राथमिक भूमिका निभाती रही हैं। आजकल मुस्लिम महिलाएं अपने सशक्तिकरण की राह पर चल रही हैं और अपनी आर्थिक आजादी के साथ-साथ समुदाय के विकास के लिए संघर्ष कर रही हैं।  हाल ही में समाप्त हुई विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप (फ्लाईवेट वर्ग) में निखत जरीन की जीत ने यह साबित कर दिया कि मुस्लिम महिलाऐ भी किसी से पीछे नही है। हाल के वर्षों में मुस्लिम महिलाएं अधिक शिक्षित और जागरूक हो गई हैं और इसलिए वे सीमांत भूमिकाओं और पदों को दृढ़ता से चुनौती दे रही हैं।
डॉक्टर रफीक रजवी ने कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर कहा कि 2016 में एक पहल जिसने मुस्लिम महिलाओं को व्यावसायिक कौशल/उद्यमिता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया और भारत की स्टार्ट-अप और तकनीकी अर्थव्यवस्था में मुस्लिमों की भागीदारी के लिए प्रेरित किया वह है पुणे में भारतीय मुस्लिम उद्यमी नेटवर्क द्वारा आयोजित किया गया एक विशेषकार्यक्रम। इस कार्यक्रम में उज़मा नाहिद (भारत अंतर्राष्ट्रीय महिला गठबंधन की संस्थापक), नफीसा काज़ी (एक वास्तुकार),फराह दीबा(एक शिक्षाविद् और प्रधानाध्यापिका) और समीना रज़्ज़ाक़ (एक वरिष्ठ पत्रकार) सहित कई मुस्लिम महिलाओं की सफलता की कहानियों का प्रदर्शन किया गया।

इस शिखर सम्मेलन ने नुज़हत हाशिर, हुडा पटेल लोखंडवाला, आयशा फैयाज़ मेमन, हिना जौहरी और फराह आरिफ खान आदि पर प्रकाश डाला। जो मुंबई में स्थित कुछ प्रसिद्ध मुस्लिम महिला उद्यमी थीं। शबाना बेगम (सेक्रेड ओवन), अखिला (अल्फा क्रिएशन्स), नौशीन ताज (खाद्य), ईशाना (सेनेटरी पैड), सलमा मूसा (संस्थापक, स्टार्टअप क्लब) मुस्लिम महिलाओं के कुछ और उदाहरण हैं जिन्होंने ने अपने प्रयासों से मुस्लिम समाज के उत्थान में अहम भूमिका निभाई है। महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें स्वतंत्र और साथ ही उन्हे अच्छे उद्यमी बनाने के लिए सभी को पहले से ही सशक्त महिलाओं की सफलता की कहानियों और संघर्षों के माध्यम से समझने की आवश्यकता है। इसके अलावा युवाओं को विशेष रूप से लड़कियों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने और उनकी क्षमताओं/कौशल को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है।डॉक्टर अशरफ ने कहा कि आज जरुरत इस बात की भी है कि इस्लाम के शुरूआती दौर की महिलाओं ने शिक्षा,व्यापार,राजनितिक,फौजी, दस्तकारी,आर्थिक मैदान में जो कार्य किये हैं उन्हे सामने लाया जाए और महिलाओं को इस ओर आकर्षित किया जाए।

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