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मंडल के सभी जनपदों में दस कीटनाशक दवाओं को 60 दिनों के लिए बैन,

 

बरेली । उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा)  विश्व नाथ ने बताया कि वर्ष 2020-21 की तुलना में 2021-22 में बासमती चावल के निर्यात में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिसका कारण बासमती चावल में कीटनाशक दवाओं का अवशेष पाया जाना है। उन्होंने कहा कि बासमती चावल में ट्राईसाइक्लाजोल रसायन का अवशेष    अनुमन्य सीमा 0.01 पी0पी0एम0 से अधिक पाया जा रहा हैं। उन्होंने कहा कि बासमती चावल का निर्यात बढ़ाने के लिए शासन ने बरेली मंडल के सभी जनपदों में दस कीटनाशक दवाओं को 60 दिनों के लिये बैन कर दिया है और इन दवाओं का प्रयोग धान की फसल में कीटनाशक एवं फफूँदी नाशक के रूप में किया जाता हैं।
 

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उप कृषि निदेशक ने कहा कि बासमती धान की फसल खेत में जुलाई से नवम्बर तक खड़ी रहती है, सितम्बर के अन्तिम पखवाड़े में फसल पकने लगती है। इन्हीं दिनों में कीट और रोगों का प्रकोप फसल पर अधिक होता है। उन्होंने कहा कि कीट और रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइसाइक्लाजोल, बुप्रोफेजिन, एसीफेट, क्लोरपाइरीफॉस, मेथामिडोफॉस, प्रोपिकोनाजोल, थायोमेथाक्साम, प्रोफेनोफॉस, आइसोप्रोथियोलेन एवं कार्बेन्डाजिम जैसे रसायनों का प्रयोग किसान करते हैं। इन रसायनों का अंश फसल के दानों पर लंबे समय तक बना रहता है। उन्होंने कहा कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा), भारत सरकार ने भी सूचित किया है कि यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और खाड़ी देश जैसे आयात देशों में कीटनाशकों के अधिकतम अवशेष स्तर के कई मानकों के कारण बासमती चावल के निर्यात को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि धान में झोंका रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम, ट्राइसाइक्लाजोल एवं आइसोप्रोथियोलेन फफूँदनाशक रसायन का प्रयोग किया जाता है, इनका विकल्प स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स है।

 

 

 

 

 

स्यूडोमोनास फ्लोरीसेन्स की 05 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि धान में शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम, ट्राइसाइक्लाजोल एवं आइसोप्रोथियोलेन फफूँदनाशक रसायन के विकल्प के रूप में ट्राइकोडर्मा हारजिएनम की 2.5 किग्रा0 मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दीमक को मारने के लिए क्लोरोपाइरीफास के स्थान पर ब्यूबेरिया बैसियाना का प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि धान भूरा फुदका एवं हरा फुदका कीट के नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस, थायोमेथोक्सम, एसीफेट कीटनाशक रसायनों का प्रयोग किया जाता है, इन रसायनों के स्थान पर नीम आयल 0.15 प्रतिशत ई0सी0 1.5-2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। धान में गंधी कीट नियंत्रण के लिए थायोमेथाक्साम रसायन के स्थान पर ब्यूवेरिया बेसियाना का प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि किसानों को धान की फसल में कीट प्रबंधन के लिए लाइट/स्टिकी/फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करना चाहिए, बायोपेस्टिसाइड ट्राइकोडर्मा हारजिएनम एवं ब्यूवेरिया बेसियाना मण्डल की सभी कृषि रक्षा इकाइयों पर 75 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध है। बायो पेस्टीसाइड वातावरण के अनुकूल है, जिसका फसल एवं मानव स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता हैं। उन्होंने सभी किसान भाई से कहा कि सम्बन्धित कृषि रक्षा इकाई से बायोपेस्टिसाइड 75 प्रतिशत अनुदान पर प्राप्त कर लाभ उठायें।

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