बरेली | नगर निगम की स्मार्ट सिटी प्लान के तहत तैयार हो रहे घंटाघर जल्द बनकर तैयार होने वाले है | घंटाघर को इस समय सजाने का काम चल रहा है | जल्द कुतुबखाने सहित आसपास के क्षेत्र में व्यापार करने वाले लोग घंटे की आवाज सुनकर समय का पता लगा सकेंगे | माना जा रहा है घंटाघर के निर्माण होने से शहर में आने वाले लोग झुमका खरीदने से पहले घंटाघर घूमने आएंगे और उसकी खूबसूरती को भी निहारेंगे | नगर निगम ने घंटाघर को बनाने के लिए लाखों रूपए का बजट भी खर्च किया है | घंटाघर के चारों ओर डिजिटल घड़ियाँ लगाने के साथ अनाउंसमेंट की व्यवस्था की है | घंटाघर के नजारा का मजा लेने के लिए बैठने की व्यवस्था की है | जानकारी के मुताबिक नगर निगम यहां आने वाले शहरवासियों के लिए खाने पीने के लिए कैंटीन की व्यवस्था भी करने वाला है | इस जगह पर फाउंटेन भी लगाने की तैयारी हो रही है | जल्द यहां लोग घंटाघर के पास लोग बैठकर सेल्फी का मजा ले सकेंगे |
कुतुबखाने बाजार में जूते का कारोबार करने वाले गुलरेज का कहना है कि बरेली के घंटाघर को बरेली की पहचान के रूप में देखा जाता है | बताया यह भी जाता है कि घंटाघर के आसपास व्यापार करने वाली व्यापारी अपनी घड़ियों को घंटाघर से मिलान किया करते थे | पुराने घंटाघर की घड़ियाँ भी काफी समय से बंद थी | इस वजह से नगर निगम ने घंटाघर के पुनर्निर्माण का फैसला लिया था | आज नया घंटाघर बनकर भी करीब करीब तैयार है | जो पहले से भी ज्यादा सुन्दर है | घंटाघर के निर्माण से एक बार फिर शहर का पुराना इतिहास जिन्दा होने की उम्मीद बढ़ गई है |समाजसेवी पम्मी वारसी ने उन्होंने वर्ष 2021 में घंटाघर के पुनर्निर्माण की मांग की थी | उस समय स्मार्ट सिटी की योजना बनी ही थी | 31 साल तक घंटाघर में लगी हुई घड़िया चली ही नहीं थी | घंटघर जर्जर अवस्था में था |
जानिए कुतुबखाने नाम पड़ने के पीछे की कहानी
कुतुबखाना एक उर्दू का शब्द है जिसका मतलब पुस्तकालय | इतिहासकारों के मुताबिक ब्रिटिश काल में 1868 में इसी जगह पर एक टाउन हॉल के नाम से एक इमारत बनाई गई थी | उस समय यह जगह शहर का प्रमुख केंद्र हुआ करता था | अंग्रेज इस इमारत का का प्रयोग कार्यालय के साथ सार्वजनिक उपयोग के तौर पर किया करते थे | बाद में इस जगह के आसपास बाजार बीएस गया जिसे आज कुतुबखाना बाजार के नाम से जाना जाता है |