बरेली। मोहर्रम की नवीं रात को बरेली के मलूकपुर इलाके में अकीदतमंदों ने 1937 के काबा शरीफ के नक्शे की ज़ियारत कर रूहानी सुकून पाया। यह ऐतिहासिक नक्शा, जो एक लकड़दादा की हज यात्रा की यादों का अमूल्य प्रतीक है, आज भी मोहर्रम के मौके पर उसी शिद्दत और अकीदत से सजाया और पेश किया जाता है।
पूर्व पार्षद मरहूम मोहम्मद नासिर की गली में सालों पुरानी पुश्तैनी रस्म को निभाते हुए मोहम्मद शुऐब ने बताया कि उनके लकड़दादा हाजी अमीर उल्लाह साहब 1937 में हज करके लौटे थे, तो अपने साथ मक्का शरीफ का खास नक्शा लेकर आए। तब से लेकर अब तक लगातार 88 वर्षों से मोहर्रम की नवीं रात को यह नक्शा सजाया जाता है।
हर साल बढ़ रही है अकीदतमंदों की तादाद
इस ऐतिहासिक नक्शे को देखने के लिए हर साल दूर-दराज़ से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। नक्शा ए हरम शरीफ के सामने खड़े होकर लोग दुआ करते हैं, “हर मोमिन को हाजी बना, काबा शरीफ की ज़ियारत करवा दे, ऐ खुदा…” अकीदतमंदों के चेहरे पर रूहानी सुकून और लबों पर सुभानअल्लाह और माशाअल्लाह जैसे जज़्बाती लफ्ज़ सुनाई देते हैं।
हज सेवा समिति के पम्मी खां वारसी भी हुए शामिल
इस मौके पर बरेली हज सेवा समिति के संस्थापक पम्मी खां वारसी भी पहुंचे। उन्होंने नक्शे की तारीफ करते हुए कहा कि “यह नायाब अमानत है, हर मोमिन के नसीब में अल्लाह हज फर्ज करे, यही हमारी दुआ है।”
दुआओं में मुल्क की खुशहाली और अमन की कामना
सपा नेता इंजीनियर अनीस अहमद ख़ाँ अपनी टीम के साथ रोज़ा ए मुबारक पहुंचे और नक्शा ए हरम की ज़ियारत की। उन्होंने दुआ की कि हज़रत इमाम हुसैन और कर्बला के 72 शहीदों के वसीले से मुल्क में अमन, भाईचारा, तरक्की और बेरोजगारी का खात्मा हो।
इन चेहरों ने निभाई अहम भूमिका
इस आयोजन में मोहम्मद शोएब, पम्मी खां वारसी, हाजी उवैस खान, हाजी शोएब खान, मोहम्मद रुशेद, मुजाहिद खां भूरा, अशफाक अहमद, इसरार वली खां, मोहम्मद जावेद, मोहसिन, गुल मोहम्मद, मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद इलमान आदि का विशेष सहयोग रहा।
बरेली की सरज़मीं पर मोहर्रम के मौके पर कायम यह परंपरा न सिर्फ अकीदत का प्रतीक है, बल्कि इतिहास और ईमानदारी की मिसाल भी है।
