बरेली।
यूनियनों ने कहा कि चार नए लेबर कोड मज़दूरों के अधिकारों को कमज़ोर करते हैं और “हायर एंड फायर” को वैध बनाते हैं, इसलिए इन्हें तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। संगठनों का आरोप है कि सरकार इन्हें “Ease of Doing Business” बताकर मजदूरों की सुरक्षा, हड़ताल और सामाजिक अधिकारों को सीमित कर रही है।

महामंत्री संजीव मेहरोत्रा ने कहा कि 29 पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर बनाए गए 4 लेबर कोड पूरी तरह नियोक्ताओं के पक्ष में हैं। शांतिपूर्ण हड़ताल पर भी दंडात्मक कार्रवाई संभव होने से सामूहिक सौदेबाज़ी की शक्ति कमजोर होगी। कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अंचल अहेरी ने कहा कि इन कोड्स से ठेका प्रथा को वैधता मिल गई है और कंपनियां अल्पकालिक अनुबंध पर मजदूर रखकर मनमाने ढंग से निकाल सकेंगी।
इंकलाबी मजदूर केंद्र के हरगोविंद ने आरोप लगाया कि ये कोड मजदूर वर्ग को गुलामी की ओर धकेलने जैसे हैं। पीएफ न जमा करने पर नियोक्ताओं पर सख्ती न होने से कर्मचारी प्रभावित होंगे और जिला स्तरीय लेबर कोर्ट खत्म होने से न्याय पाना कठिन होगा। उपाध्यक्ष जितेंद्र मिश्रा ने बताया कि ठेका मजदूरों की संख्या 15.5% से बढ़कर 27.9% तक पहुंच चुकी है, जिससे कम मजदूरी पर काम करवाने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के मोहम्मद फैसल ने कहा कि फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने पर मजदूर स्वतः बेरोज़गार हो जाएंगे। छंटनी की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 करने पर छोटे प्रतिष्ठान मनमाने ढंग से छंटनी कर सकेंगे और 93% मजदूर सुरक्षा से बाहर हो जाएंगे। शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अध्यक्ष हरि शंकर और मार्केट वर्कर्स यूनियन के मोहित देवल ने भी असंगठित क्षेत्र के 567 मिलियन मजदूरों पर गंभीर प्रभाव बताये।
अंत में क्रांतिकारी किसान मंच के हिमांशु ने कहा कि मजदूर–किसान की एकता ही इन नीतियों के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करेगी। सभा में अरविंद शुक्ला, रामसेवक, पप्पू, अंकित, विमल, संजय, कैलाश, सौरभ सहित कई प्रतिनिधि मौजूद रहे।




