क़ाज़ी-ए-हिंदुस्तान की सरपरस्ती में हुआ समापन, दुनियाभर में ऑडियो लाइव से जुड़े लाखों मुरीद
बरेली। आला हज़रत के छोटे साहबज़ादे, ताजदारे अहले सुन्नत, मुफ़्ती-ए-आज़म-ए-हिंद अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान क़ादरी नूरी का 45वां उर्स-ए-नूरी 9 जुलाई को बरेली स्थित ताजुश्शरिया ख़ानकाह में रूहानी माहौल के बीच अकीदत और एहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर क़ाज़ी-ए-हिंदुस्तान मुफ़्ती असजद रज़ा ख़ान क़ादरी की सरपरस्ती और सदारत में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।
उर्स की शुरुआत नमाज़-ए-फज्र के बाद कुरानख्वानी और नात-ओ-मनक़बत से हुई, जबकि शाम को कारी शरफुद्दीन की पाक कलाम की तिलावत से मुख्य कार्यक्रम का आगाज़ हुआ। कार्यक्रम का संचालन मौलाना शम्स ने किया।
जमाअत रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन ख़ान (सलमान मियाँ) ने बताया कि देशभर से आए उलमा-ए-किराम ने मुफ़्ती-ए-आज़म की जीवनी, फतवों और मसलक-ए-आला हज़रत की ख़िदमत पर रोशनी डाली। मुफ़्ती शहज़ाद आलम मिस्बाही और मुफ़्ती अफ़ज़ल रज़वी नूरी समेत कई उलमा ने बताया कि मुफ़्ती-ए-आज़म का नसबंदी पर दिया गया फतवा इतिहास में अमिट स्थान रखता है, जिसने उस दौर की सरकार की नींव हिला दी थी।
राष्ट्रीय महासचिव फरमान हसन ख़ान (फरमान मियाँ) ने बताया कि मुफ़्ती-ए-आज़म ने अपनी ज़िंदगी खिदमत-ए-दीन और खिदमत-ए-खल्क़ में गुज़ारी। उनकी लिखी किताबें जैसे फतवा मुस्तफ़विया, अल मौत अल अहमर और समाने बख्शिश आज भी मार्गदर्शक हैं।
देर रात 1:40 बजे क़ाज़ी-ए-हिंदुस्तान ने कुल शरीफ की रस्म अदा की और कौम व मिल्लत के लिए दुआ की। अज़हरी मेहमानख़ाने में देशभर से आए ज़ायरीन के लिए लंगर का विशेष इंतज़ाम किया गया।
दुबई, यूके, हॉलैंड, मलावी, अफ्रीका सहित कई देशों में भी उर्स-ए-नूरी मनाया गया, और इसका कार्यक्रम मरकज़ से ऑडियो लाइव किया गया, जिसे लाखों मुरीदों ने सुना।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अब्दुल मुस्तफा हाशमती रूदौलवी, मौलाना गुलज़ार रज़वी, कारी मुर्तज़ा, कारी वसीम, हाफिज इकराम, मौलाना निज़ामुद्दीन, मोईन ख़ान, शमीम अहमद सहित बड़ी संख्या में उलमा और अकीदतमंद मौजूद रहे।
