छुरी-बंद जंजीरों से मातम, नंगे बदन पर बरसाईं तकलीफें — लहूलुहान होकर दी हुसैन को श्रद्धांजलि
सेंथल (बरेली)। यौम-ए-आशूरा पर रविवार को कस्बा सेंथल ग़म और अकीदत के समंदर में डूब गया। “या हुसैन… या हुसैन…” की गूंज के बीच हर गली, हर चौक मातम से थर्रा उठा। अकीदतमंदों ने नग्न बदन, लोहे की जंजीरों में बंधी छुरियों से खुद को ज़ख्मी कर इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को सलाम किया। दृश्य ऐसा था कि जिसे देख कर पत्थर दिल भी पिघल जाए।
जंजीरों से छलनी बदन, लबों पर बस नाम — हुसैन
मुख्य चौराहे पर जैसे ही ताजिए पहुंचे, अज़ादारों ने जंजीरों में बंधी छुरियों से खुद पर वार शुरू कर दिए। लहू बहता रहा, मगर किसी ने रुकने की कोशिश नहीं की। यह मातम सिर्फ ग़म का नहीं, बल्कि वफ़ा और कुर्बानी की सच्ची मिसाल था। अंजुमनों की नौहा ख्वानी से माहौल ग़मजदा होता चला गया। “हुसैन… हुसैन…” की सिसकियों से फिजा भर उठी।
गांव-गांव से पहुंचे ताजिए, इमामबाड़ा से होकर कर्बला मैदान में हुए सुपुर्द-ए-ख़ाक
लाईखेड़ा, टांडा, सादात, पनुआ और लाडपुर जैसे गांवों से आए ताजिए इमामबाड़ा कला में एकत्र होकर जुलूस की शक्ल में कर्बला मैदान की ओर रवाना हुए। कर्बला पहुंचने पर, नम आंखों और “या हुसैन” की सदाओं के बीच ताजिए दफन किए गए। मानो ज़मीन ने कर्बला की तहरीर को फिर से अपने सीने में समेट लिया हो।
मजलिस में छलके जज़्बात, शाम-ए-ग़रीबा में जल उठी यादों की शमा
दोपहर की मजलिस में मौलाना नजीब अब्बास ने जब इमाम हुसैन की शहादत का मंजर सुनाया, तो मजलिस में मौजूद हर शख्स की आंखें भर आईं। मगरिब की नमाज के बाद हुई शाम-ए-गरीबा की मजलिस ने ग़म को और गहरा कर दिया। अंजुमन असगरिया ने जब नौहा पढ़ा, तो हर दिल रो पड़ा। शबीह-ए-ताबूत की ज़ियारत कराई गई और मोमबत्तियों की रौशनी में हर चेहरा हुसैन की याद में झुका दिखा।
औरतें-बच्चे भी हुए शामिल, सुरक्षा को लेकर प्रशासन रहा सतर्क
जुलूस में जहां एक ओर मर्द अज़ादार थे, वहीं बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल रहे। इमाम हुसैन की याद में हर आंख नम दिखी। कर्बला मैदान से लेकर जुलूस मार्ग तक भारी भीड़ रही। सुरक्षा को लेकर प्रशासन ने पूरी कमान संभाली। पुलिस, होमगार्ड और राजस्व टीमें जगह-जगह तैनात रहीं। ड्रोन से निगरानी और वॉच टावर से हर गतिविधि पर नजर रखी गई।
