1 मई – अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस “दुनिया के मज़दूरों, एक हो!”

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संजीव मेहरोत्रा
महामंत्री
बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन

 


 

 

1 मई 2025 को ऐतिहासिक मई दिवस एक बार फिर हमारे बीच आ रहा है। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि मज़दूरों के संघर्ष, बलिदान और अधिकारों की कहानी है। आज से लगभग 139 वर्ष पूर्व, 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में हज़ारों मज़दूरों ने 8 घंटे कार्यदिवस की मांग को लेकर एक ऐतिहासिक आंदोलन किया था। इस आंदोलन में कई मज़दूरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनके संघर्षों के फलस्वरूप ही आज 8 घंटे कार्यदिवस का अधिकार संभव हो पाया।

उस ऐतिहासिक बलिदान की स्मृति में ही अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन ने 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। तब से लेकर आज तक, दुनिया भर के मज़दूर इस दिन को “दुनिया के मज़दूरों, एक हो!” के नारे के साथ पूरी दृढ़ता से मनाते आ रहे हैं।

यह दिन न केवल अतीत के बलिदानों को याद करने का, बल्कि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से मुकाबला करने की प्रतिबद्धता जताने का भी दिन है।


आज की चुनौतियाँ – मज़दूर विरोधी नीतियाँ

देश में मौजूदा परिस्थितियाँ मज़दूर वर्ग के लिए अत्यंत चिंताजनक हैं। सरकार द्वारा पुराने श्रम कानूनों को समाप्त कर मज़दूर एवं ट्रेड यूनियन विरोधी चार नई श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) को लागू किया जा रहा है। इनके लागू होने से:

  • लाखों मज़दूर कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगे,
  • प्रबंधन को बिना रोक-टोक छँटनी, ले-ऑफ़ और क्लोजर का अधिकार मिल जाएगा,
  • ट्रेड यूनियनों की भूमिका सीमित हो जाएगी।

इन नीतियों का उद्देश्य श्रमिक अधिकारों का हनन करना और पूंजीपतियों को बढ़ावा देना है।

महंगाई, बेरोजगारी, और तेजी से बढ़ता निजीकरण भी मज़दूरों की स्थिति को और कठिन बना रहा है। नेशनल मॉनिटाइजेशन पाइपलाइन नीति के तहत सार्वजनिक संपत्तियों को निजी हाथों में सौंपने की कोशिशें जारी हैं।


मई दिवस 2025 – एक नई प्रतिज्ञा का दिन

इस वर्ष का मई दिवस पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि उन अधिकारों को बचाने का संकल्प लेने का दिन है, जो दशकों के संघर्ष से हासिल हुए हैं।

आज ज़रूरत है कि हम एकजुट होकर इन जनविरोधी, मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी और ट्रेड यूनियन विरोधी नीतियों का संगठित विरोध करें।


संयुक्त संघर्ष की आवश्यकता

हम देख रहे हैं कि यह हमला केवल बैंकों या किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्त ट्रेड यूनियन आंदोलन के खिलाफ एक संगठित हमला है। सरकार एक साथ कई जनविरोधी एजेंडों पर कार्य कर रही है —

  • आर्थिक सुधार,
  • श्रम सुधार,
  • बैंकिंग सुधार,
  • भूमि सुधार — जो आम जनता के हितों के विरुद्ध हैं।

ऐसे में हमें चाहिए कि हम 20 मई 2025 को केंद्रीय श्रमिक संगठनों एवं स्वतंत्र फेडरेशनों द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल में भाग लेकर इस संघर्ष का हिस्सा बनें।


कार्यक्रम को सफल बनाएं।

संजीव मेहरोत्रा
महामंत्री
बरेली ट्रेड यूनियंस फेडरेशन

 

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Author: newsvoxindia

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