
लेखक :मौलाना मुजाहिद,शहर अध्यक्ष तंजीम उलमा-ए-इस्लाम, बरेली
रमज़ानुल मुबारक सबसे ज़्यादा बरकत वाला महीना है| इस माहे रमज़ान का इस्तक़्बाल इबादत से तक़्वे से मोहब्बत से ख़लूस से किया जाए | जब माहे रमज़ान आता है तो जन्नत के आठो दरबाज़े खोल दिए जाते हैं | अल्लाह की रहमतें बन्दो के बहुत क़रीब हो जाती हैं और ग्यारह माह जन्नत की आराइश सिर्फ रमजानुल मुबारक के इस्तकबाल के लिए होती हैं| एक रिवायत मे आता है जब माहे रमज़ान का आगाज़ होता है तो अल्लाह अहले ईमान को अपने बन्दो को मोहब्बत की नज़र से देखता है| और अल्लाह जिस को मोहब्बत की नज़र से देख ले फिर उसे कभी अज़ाब नही देगा| जिस तरह ढाल आप कर देते हैं जंग मे बरस्ते हुए तीरो के सामने तो वो तीर ढाल से टकराकर गिर जाते हैं | और आपको नुक़्सान नही पहुचता है उसी तरह रोज़ा भी आतिशे दोज़ख़ से ढाल है रोज़ेदार के लिए और रोज़ादार को इसकी ख़ास रहमतें नसीब होती हैं| तो हमे चाहिए रमज़ानुल मुबारक मे ख़ूब ख़ूब इबादात करे और तमाम बुरी बातो से बचें और अपने रब को राज़ी करे|
