मंजर-ए-इस्लाम की ई -पाठशाला : स्वार्थी राजनीतिक नेतृत्व ने कश्मीर को विकास की पटरी से उतारा , जानिए मुफ़्ती सलीम नूरी ने कश्मीरियों से क्या की अपील ?
बरेली | जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम दरगाहे आलाहजरत बरेली शरीफ के विचारक,बुद्धिजीवी और वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती सलीम नूरी ने योवाओ, मदरसों के छात्रों और विश्वविद्यालयों के छात्रों को मंजरे इसलाम की ई-पाठशाला द्वारा भारत की आजादी के इतिहास की जानकारी देते हुए अपने संबोधन में आज बताया के अंग्रेजी साम्राज्य भारत से जाते जाते कुछ् ऐसे मुद्दे छोड़ गया जिस से हमारा देश हमेशा जुझता रहे और कभी यहाँ अमनो शांति स्थापित ना हो। कश्मीर का मुद्दा भी इसी गंदी अंग्रेजी पालिसी की देन है।
कश्मीर की स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए मुफ्ती सलीम नुरी ने कहा कि यह राज्य सुंदरता का एक अनूठा उदाहरण है। निस्संदेह, यह हमारे देश भारत का एक अभिन्न अंग भी है जिसे कुछ् बिदेशी ताकतों ने खुन खराबे और आतंकवाद की भटटी में झोंक दिया था।मगर अल्लाह का शुक्र है कि अब कशमीर के हालात सामान्य हो रहे हैं। मुफ्ती सलीम नूरी ने कश्मीर के विशेष दर्जे और अनुच्छेद 370 के खात्मे की दूसरी बरसी के मौके पर कश्मीर के बदलते हालात के संदर्भ में अपना विश्लेषणात्मक भाषण देते हुए कहा कि कश्मीर राज्य को कुदरत ने अद्वितीय सुंदरता खुबसूरती और कुदरती नेमतों से नवाजा है, इस्लामिक धर्म सेवकों, सूफियों और पीर वलीयों ने अपनी आध्यात्मिक,सुफयाना रूहानी, खानकाही,अमनो शान्ती भरी और रुहानी शिक्षा व दीक्षा को प्रचारित कर के इसमें चार चाँद लगा दिए थे। यह राज्य प्राचीन काल से आध्यात्मिक सौंदर्य, सुफियों , बुद्धिजीवीयों ,खानकाहों और सुन्नी इदारों का स्रोत रहा है। यहां रहने वाले सभी लोग सुन्नी हनफी और भोले लोग रहे हैं जो मानवता और आतिथ्य की भावना से भरे मजारात, खानकाहों और इस्लामिक तीर्थस्थलों में विश्वास करते थे।यहाँ का आपसी सौहार्द बे मिसाल था।
लेकिन कश्मीर के उस पुराने स्वार्थी राजनीतिक नेतृत्व पर जिसने आजादी के बाद अपने स्वार्थी राजनीतिक नेतृत्व के साथ इस खूबसूरत राज्य को अपने निजी स्वार्थ की दहलीज पर कुर्बान कर दिया। कश्मीर का यह राजनीतिक नेतृत्व आज़ादी के बाद ही से खुद तो विलासिता और राजनितिक फायदे का आनंद लेता रहा लेकिन उसने कश्मीर के लोगों को गरीबी के हवाले कर दिया। कश्मीर के राजनीतिक नेताओं के बच्चे इंग्लैंड और अमेरिका में उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ते रहे और यहां के आम लोगों के बच्चों को अनपढ बनाते रहे। हुर्रियत नेताओं ने खुद तो हुकुमत से सुरक्षा गनर लिए , विभिन्न सहुलतें लेते रहे लेकिन कश्मीर के भोले भाले लोगों को धरनों और प्रदर्शनों के नाम पर पुलिस और सैन्य गोलियों का निशाना बनने को छोड़ दिया। स्थिति इस हद तक बिगड़ गई कि कश्मीरी लोगों की आय के स्रोत नष्ट हो गए। उन्होंने अपनी नौकरयाॅ खो दीं । वे शिक्षा से वंचित हो गए। गरीब और गरीबी उनकी नियति बन गई। उन्हें दर बदर भटकने और भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा और यह सब कश्मीर में स्वार्थी राजनीतिक नेतृत्व की अज्ञानता और राजनीतिक विलासता के कारण हुआ ।
मजबूरी के यही वह हालात थे जब विदेशी वहाबी आतंकियों ने यहां के युवाओं की मजबूरी का फायदा उठाया और ज्ञान व कलम और कागज की जगह उनके हाथों में हथियार दे दिए। फिर तो कश्मीर में आग और खून का खेल शुरू हो गया । आतंकवाद ने कश्मीर को तबाह कर दिया धर्मस्थलों,मजारों, खानकाहों और सुन्नी संस्थाओं पर हमले शुरू हो गए। सूफीवाद, खानकाही और मजारात की व्यवस्था नष्ट होने लगी। कलम और किताबों के बजाय छोटे छोटे बच्चों के हाथों में पत्थर दे दिए गए। कई दशकों तक इस रियासत में यह खुन खराबा होता रहा कि इसी दरमियांन अभी दो वर्ष होने को आये कि इसके विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया गया। जिसके बाद कश्मीर का एक नया नक्शा दुनिया के सामने पेश किया गया ।
मुफ्ती सलीम नूरी ने कश्मीरी युवाओं से शिक्षा प्राप्त करने की अपील के साथ यह भी गुजारिश की कि सुख और शांति का वातावरण स्थापित करें। विदेशी शक्तियों का हथियार न बनें। सूफी विचारधारा वाली व्यवस्था से जुड़े रहें। राज्य से आतंकवाद को खत्म करें।
